25.12.09

कॉंग्रेस

कॉंग्रेस का हाथ जगन्नाथ

चुनाव से पहले जोर-जोर से चीख-चीख कर नारे लगाए गये कि कॉंग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ वह हाथ ही आज आम आदमी का धुर्रा उड़ाए जा रहा है। दिल्ली में गरीबों की तनख्वाह नहीं बढ़ी, पर बसों का किराया बढ़ा दिया गया, वो भी सिर्फ इसलिए कि दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को मोटे कमीशन के एवज में कारपोरेट जगत के लोगों को सौंपा जा सके! चन्द लोगों के मुनाफे के मद्देनजर सरकार ने गरीबों को ही टांग दिया, और तो और लोगों के पीने के पानी पर भी सरकार की मिलीभगत से मल्टीनेशनल कम्पनियां कब्जा करती जा रही हैं।


महंगाई बढ़ाबढ़ा, कर रहे विकास 
दीख रही अब मुझे, गरीब की लाश! 

आज देश के करोड़ों गरीब और वंचित परिवार मूलभूत वस्तुओं और उपभोक्ता सामानों की आसमान छूती कीमतों की चक्की में पिसता चला जा रहा है। गरीबों को और गरीबी की रेखा से नीचे धकेला जा रहा है। देश के गरीब की हालत यह है कि बढ़ती मंहगाई के कारण वह खून के आंसू रो रहा है। उसकी सुनने वाला कोई नहीं। आज सब्जियों में भिन्डी 50 रुपया किलो है, तो आलू 30 रुपये। एक रुपये किलो का घीया भी 20 रुपये किलो है। दालें- 26 रुपये किलो की मलका दाल देखते ही देखते 90 रुपये किलो हो गई। इसी प्रकार सभी दालों में दौड़ लग गई, कि कौन सी दाल कीमतों में आगे जाए। 16 रुपये किलो की चीनी 40 रुपये से ऊपर हो गई। आज देश में मंहगाई ऐसे कुण्ड की तरह हो गई है जो दिन पर दिन धधकता ही जा रहा है।

आश्यर्य है कि सरकार मैं बैठे लोगों को उसकी धधक ही नही लग रही। चुनाव से पहले तो जोर-जोर से चीख-चीख कर नारे लगाए गये कि कोग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ । वह हाथ ही आज आम आदमी का धुर्रा उड़ाए जा रहा है। दिल्ली में गरीबों की तनख्वाह नही बढ़ी, पर बसों का किराया बढ़ा दिया गया, वो भी सिर्फ इसलिए कि दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को मोटे कमीशन कमीशन के एवज में कारपोरेट जगत के लोगों को सौंपा जा सके! चन्द लोगों के मुनाफे के मद्देनजर सरकार ने गरीबों को ही टांग दिया, और तो और लोगों के पीने के पानी को भी सरकार की मिलीभगत से मल्टीनेशनल कम्पनियां कब्जा करती जा रही हैं।

देश का 65 करोड़ गरीब मंहगाई की मार से धधक रहा है, तो शहरों में रहने वाले मध्यमवर्गीय मंहगाई और भ्रष्टाचार दोनों की मार से झेल रहा है। अब ये आम आदमी करे तो क्या करे और जाए तो कहां जाए? जिनको वोट दिया ‘‘उन्हे तो गुमान हो गया- उनका भारत महान हो गया, पहुंचा जो पद पर यही कहा उसने- मेरी जेब में हिन्दुस्तान हो गया’’। वहां तो कौड़ियों के मधु कौड़ाओं के लिए प्रतिदिन 5-10 करोड़ कमा लेना बांए हाथ का काम है। उन्हे मंहगाई से क्या लेना देना ? या फिर राज्यों व केन्द्र की सरकार के कर्मचारियों, जिनका वेतन इतना है कि एक बारगी वह भी मंहगाई को झेल सकते हैं, फिर भी उन्हे सरकार द्वारा समय-समय पर मंहगाई के नाम पर भत्ते व अन्य प्रोत्साहनों के जरिए उनकी भरपाई कर देती है। उनकी आय पर सरकार द्वारा उन्हें आय पर लगने वाले करों पर भी छूट बढ़ाती जाती है। जबकि श्रमिकों के वेतन और गरीबों की आय ज्यों की त्यों ही न्यून बनी हुई है। वे भला कैसे अपने इन हलातों से मंहगाई का सामना कर सकते हैं? एैसी स्थिती में आम आदमी का बार-बार मरना तय है। बेशक सरकार गरीबों को सस्ते कपड़े, सस्ते मोबाइल, सस्ते टेलीविजन देने का दंम भरे, पर समस्या तो पेट की है।

गरीब की आय का न बढ़ना और जीने के सामानों की लगातार मल्यवृद्धि होते जाने से आज देश की गरीब जनता को नमक और मिट्टी तेल जैसी चीजों को खरीदने के लिए भी अनेक बार सोचने को मजबूर होना पड़ता है। उसकी क्रय शक्ति दिनों दिन क्षीण होती जा रही है, और जिस देश की जनता की रोजमर्रा के सामानों को खरीदने की शक्ति कम होती चली जाए तो उस देश की सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नही बनता। सरकार कहती है कि भारत का सकल घरेलू उत्पादन 9 प्रतिशत को पार करने वाला है, यह देश के लिए एक अच्छी बात है। क्या खाक अच्छी बात है, ऐसी विकास दर का क्या हो जिससे देश के एक प्रतिशत गरीबों की गरीबी भी दूर न हो सके। आज देश की कुल आबादी में से 29 प्रतिशत लोग कंगाली स्तर पर रहते हैं, उनकी आमदनी सरकार के अनुसार मात्र 450 रुपये महीना है 15 रुपया प्रतिदिन। इसके अलावा लगभग 60 प्रतिशत आबादी 750 रुपया प्रतिमाह के क्रम में कमा पाती है। जबकि सरकार की ओर से 1200 रुपया प्रतिमाह वाले परिवार को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है। यानि 89 प्रतिशत देश की आबादी गरीबी की रेखा से नीचे रहकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर है। अब सवाल उठता है कि ऐसी स्थिती का दोषीi कौन है? निश्चित रूप से सरकार की नीतियां और उसके काम करने का ढर्रा दोषी है। रही सही कसर भ्रष्टाचारियों ने पूरी कर दी। अब तो सरकार अपनी ही नीतियों के मकड़जाल में इस कदर फंस गई लगती है जो चाह कर भी मूल्यवृद्धि को रोक नही सकती। हां कुछ समय के लिए आमजन को राहत के नाम पर स्थिर तो कर सकती है! सरकार द्वारा गरीब की गरीबी दूर करने के सभी प्रयास असफल रहे हैं।
सरकार द्वारा बाजार को पूरी सत्ता सौंप देने का ही परिणाम है, कि आज गरीब मंहगाई की चक्की में पिसता चला जा रहा है। और सरकार हाथ बांधे अपनी बेबसी पर आंसू बहाते दीखती है। बेशक ये या कोई अन्य सरकार भी मंहगाई को खत्म नही कर सकती, लेकिन तत्कालिक उपाय तो किए ही जा सकते हैं। फौरी तौर पर सबसे पहले वायदा बाजार (कमोडिटी बाजार) की सट्टे बाजी को खत्म करना होगा।
इतिहास अपने आप को दोहराता है, 2004 में गरीबों से भटक गई भाजपा के इण्डिया शाइनिंग और भारत उदय के झांसे में आए बिना‘गरीबों ने अपनी ठोकर से बुरी तरह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को उखाड़ कर फ़ैंक दिया था। उस असमंजस के झूले पर भाजपा आज तक झूला झूल रही है। कांग्रेस को गरीब के विकास के साथ, देश के विकास की बात पर गरीबों ने हैरतअंगेज तरीके से विजयी बनाया। बनवास झेलती सोनिया को मदर टरेसा और मदर इण्डिया के नामों से इज्जत बख्शी गई। लेकिन आज देश के विकास के नाम पर जिस प्रकार कांग्रेस गरीबों को बदहाली की ओर धकेलने का काम करने लगी है, आवश्यक सामानों की कीमतें हिरन की तरह छलांगे लगाती हुई आसमान छू रही हैं। उसपर कांग्रेस की ओर से आम आदमी का रोना रोने का   घड़ियाली डोंग! ऐसा न हो कि 10 सालों के सत्ता बनवास से छूटकर सत्ता में आई कांग्रेस को, गरीबों की कसौटी पर खरा न उतरने के एवज में पुनः बनवास जाना पड़ जाए! जरूरत है कुनियंत्रण को खत्म कर नियंत्रण करने की। 

सरकार द्वारा बाजार को पूरी सत्ता सौंप देने का ही परिणाम है, कि आज गरीब मंहगाई की चक्की में पिसता चला जा रहा है। और सरकार हाथ बांधे अपनी बेबसी पर आंसू बहाते दीखती है। बेशक ये या कोई अन्य सरकार भी मंहगाई को खत्म नही कर सकती, लेकिन तत्कालिक उपाय तो किए ही जा सकते हैं। फौरी तौर पर सबसे पहले वायदा बाजार (कमोडिटी बाजार) की सट्टे बाजी को खत्म करना होगा। उनके व्यवहार को नियंत्रण करना होगा। इससे ही सरकार को मूल्यवृद्धि रोकने में काफी मदद मिलेगी, और सरकार भी मजबूत होगी। इसके बाद सरकार अगले कदम के रूप में आवश्यक सामानों के मूल्य गरीब, मध्यवर्गीय और अमीर की अमीरी के हिसाब से तय करे। जैसे रसोई के गैस भरे सिलण्डर को ही लें, सबके लिए उसकी कीमत बराबर है। पैसे वाले को तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर गरीब के लिए कठिन होता है। जबकि सरकार की नीति इस प्रकार हो कि वह अमीर,
गरीब और मध्यवर्ग में से किसी को न चुभे।
सुरेश त्रेहन
कार्टून: चन्दर