24.9.10

भगवा पर उंगली उठाने वाले ये जान लें कि....‘‘भगवा ही भारत का व्यक्त्तिव है’

हमारे दे’ा की राजनीति आज इतनी गन्दी हो गई है, जब कभी भी अल्पसंख्यक वोटों को पाने की बात हो, या उनको खु’ा करने की बात, मुसलमानों, ईसाइयों के विरूद्ध होने वाली प्रायः हर बात के लिए आंख मूंद कर उसका दो”ा भगवा पर मढ़ दिया जाता है। झट-पट कह दिया जाता है कि इस काम में भगवा के लिप्त होने की बू आ रही है। बे’ाक आप आरोप लगाएं, हमारे लोकतन्त्र में आरोप-प्रत्यारोप लगाने की परम्परा भी है। आरोप संगठन या दल का नाम लेकर लगाना चाहिए, न कि भगवा पर। यहां हर कोई अपना उल्लू सीधा करने के लिए, अपनी कमियों कोछुपाने के लिए, जनता का ध्यान बांटने के लिए किसी पर भी आरोप लगा देता है। बे’ाक उन आरोपों में एक प्रति’ात की भी सच्चाई न हो। जहां तक भगवा का सवाल है, यह हर ऐरे-गेरे को, जो बात-बेबात पर भगवा पर उंगली उठाने से बाज नही आता, उनको जानना चाहिए कि ‘‘भगवा ही भारत का व्यक्त्तिव है’ भगवा कोई रंग नहीं है। ये तो थोड़ा पीला, थोड़ा नारंगी और थोड़ा लाल मिलाकर भगवा बना। बिल्कुल आते-जाते सूरज जैसा। तेज आग की लपट जैसा। सदियों से भगवा भारत के ‘ाोर्य का प्रतीक है। भारत ने अपने इस प्रतीक को जल्दबाजी में नहीं चुना है बल्कि इसको चुनने में अध्ययन था। अनुभव था। अनुभतियां थी। योग था। प्र’न थे। तर्क और वितर्क थे। नि”कर्”ा थे। इसी में से अध्यात्म आया। इसी की अभिव्यक्ति हुई भगवा में। यह संसार जीत का प्यासा है। जहां हार कर लौेटने वाला दुखी और जीत कर लौटने वाला खु’ा होता है। परन्तु भारत दे’ा ही एक एैसा दे’ा रहा जहां जीत कर भी जीतने वाले का चित्त उदास ही रहा। वह दुखी था। राम रावण को जीत कर लौटे। तो उदास थे। महाभारत के विजेता भी युद्ध जीत कर उदास हुए। हिमालय चले गए। सम्राट अ’ाोक कलिंग जीत कर उदास हो गया। वह अ-’ाोक था वही ‘ाोकग्रस्त हो गया। वह बौद्ध हो गया। जीत कर उदास होने और हार कर फिर बार-बार लड़ने का रहस्य सिर्फ भारत के पास ही था। वह भगवा था। भारत के व्यक्तित्व, भारत के प्रतीक, भारत के प्रतिमान और भारत की परम्परा को नि’ााना बनाकर उस पर आरोप- प्रत्यारोप करने से कोई नई उपलब्धि नही मिलने वाली। आज पूरी दुनियां दो के संघर्”ा पर टिकी हुई है ‘ाुभ-अ’ाुभ, सत्य-असत्य, पदार्थ-परमात्मा, उंच-नीच में। ईसाइयत, यहूदी और इस्लाम भी स्वर्ग-नर्क के द्वन्द पर आश्रित हैं। पर भारत ने ही सिर्फ इस द्वन्द को पार कर तीसरे तत्व को पाया। स्वर्ग और नर्क के कर्मों से। उसने मोक्ष को प्रतीति दी। इसके पीछे की ‘ाक्ति भगवा ही थी। सभी ‘ाक्तियों का सार है भगवा।

बाबर कोई मसीहा नही था।

अयोध्या के विवादित परिसर के मालिकाना हक के फैेंसले को न्यायालय
ने सुरक्षित रखते हुए 24 सितम्बर को सुनाने की बात कही थी। फेंैसला
आने से पहले ही सरकार ने दे’ा की जनता को डराना ‘ाुरू कर दिया
कि इस फैेंसले के आने के बाद कहीं कुछ भी हो सकता है। स्वयं दे’ा
के गृह मन्त्री पी. चिदम्बरम टीवी चैनलों के माध्यम से जनता को संयम
बरतने की सलाह देते नजर आए। जबकि दोनों पक्ष के प्रतिनिधियों द्वारा
अदालत का फेैंसला मान्य होगा कि बार-बार घो”ाणाएं होती आ रही हैं।
कहीं भी तनाव जैसी बात ही नही थी, पर सरकार ने स्वयं दे’ा की
जनता को इस मामले को संवेदन’ाील बता-बताकर संवेदन’ाील बना
दिया है। सरकार की पहल से अब लगता है कि बाबर के वं’ाज
अक्रान्ता का मकबरा या मस्जिद बनाकर ही दम लेंगे, जबकि हिन्दू भी
रामलला की एक इंच भूमि छोड़ने को तैयार नही। फेैंसला जो भी हो,
इसे सरकार कहां तक अमल करवा पाती है यह देखने योग्य बात होगी!
आज चारों तरफ यही सुगबुगाहट है कि अपने वोटों की खातिर सरकार
रामलला के फेैंसले को ठंडे बस्ते में न डाल दे ?
अयोध्या में मस्जिद/ मकबरा बनेगा या राम मन्दिर ? मुसलमान चीख-
चीख कर कह रहा है कि निर्णय मुसलमानों के पक्ष में होना चाहिए,
क्योंकि वे बेचारे हैं, अल्पसंख्यक हैं, कांग्रेस के साथी हैं। उनकी
आस्थाएं हिन्दुओं की आस्थाओं से अधिक महत्व की हैं। मुझे मुसलमानों
की सोच पर आ’चर्य होता है कि कैसे एक क्रूर विदे’ाी आक्रमणकारी
का मकबरा या मस्जिद बनाने के नाम पर अपना सिर पीट रहे हैं। हाय
तौबा मचा रहे हैं। एक बड़ा सवाल है कि - क्या अत्याचारियों की भी
पूजा होनी चाहिए ? क्या अत्याचारियों के स्मारकों के लिए अच्छे लोगों
के स्मारकों को तोड़ देना चाहिए? ( कथित बाबरी मस्जिद भी श्रीराम
लला के मन्दिर को तोड़कर बनाई गई थी ), क्या लोगों की हत्या
करने वाला भी किसी वर्ग वि’ो”ा का आदर्’ा हो सकता है ? रावण
प्रकाण्ड पंडित था, लेकिन बहुसंख्यक हिन्दु समाज का आदर्’ा नहीं। कंस
बहुत ‘ाक्ति’ााली था, लेकिन वह भी कभी हिन्दुओं का सिरोधार्य नहीं
रहा। हिन्दुओं ने कभी भी अत्याचारियों के मन्दिर या प्रतीकों के निर्माण
की मांग नही की। फिर एक अत्याचारी, अनाचारी, विदे’ाी आक्रमणकारी
का मकबरा या मस्जिद क्यों बननी चाहिए ? इतिहास में दर्ज है कि
काबूल - गांधार दे’ा, जो आज अफगानिस्तान की राजधानी है। 10वीं
‘ाताब्दी के अंत तक गांधार और प’िचमी पंजाब पर लाहौर के हिन्दू
’ााही राजवं’ा की हकूमत थी। सन् 990 ईसवी में काबुल पर तुर्क के
मुसलमानों का अधिकार हो गया, फिर उन्ही तुर्क मुसलमानों ने मेहमूद
गजनवी के नेतृत्व में काबुल को आधार बनाकर भारत पर बार-बार हमले
किए। उसके बाद 16वीं ‘ाताब्दी में मध्य ए’िाया के एक छोटे से मुगल
( मंगोल ) ‘ाासक बाबर ने आकर काबूल पर अधिकार जमा लिया।
वहां से वह आगे बढ़ता हुआ भारत आ गया और सन् 1526 में पानीपत
की पहली लड़ाई में विजयी हो कर दिल्ली का मालिक बन बैठा। पर
उसका दिल दिल्ली में नही लगा, और वह चार साल बाद 1530 ईसवी
में मर गया। उसके ‘ाव को काबूल ले जाकर दफनाया गया। इसलिए
उसका मकबरा भी वहीं है। आज उस मकबरे की हालत जीर्ण‘ाीर्ण है।
उसकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है। बलराज मधोक ने अपनी
पुस्तक ‘‘जिन्दगी का सफर-2’’ में लिखा है कि जब मैं काबूल में बाबर
के मकबरे को देखने गया तो उस खस्ता हाल मकबरे की हालत देखकर
वहां के लोगों से पूछा कि इस मकबरे की हालत एैसी क्यों है?
तो वहां के एक व्यक्ति ने बलराज मधोक को अंग्रेजी में जवाब दिया था
कि ‘क्मउदमक वितमपहदमत ूील ेीवनसक ूम उंपदजंपद ीपे
उंनेंसमनउण्’’ इसका मायने कि इस विदे’ाी हमलावर के मकबरे
का रखरखाव और देखभाल हम क्यों करें? काबूल के लोगों के लिए
भी वह विदे’ाी ही था। वह छोटे से फरगान राज्य से आया था। परन्तु
यह कैसा दुर्भाग्य है कि जिसे काबूल के लोग विदे’ाी आक्रमणकारी,
आततायी मानते हैं, उसे हिन्दुस्तान की सरकार और भाड़े के बुद्धिजीवी
हीरो मानते हैं ? और उस बाबर के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर को
तोड़ कर बनाई गई अवैध बाबर की बाबरी मस्जिद को बनाए रखने में
अपनी ‘ाान और बड़प्पन मानते है, जबकि उसका मालिकाना हक बहु
संख्यक हिन्दुओं का है। फेंैसला भी हिन्दुओं के हक में ही आना चाहिए।
क्योंकि यहां राम का जन्म हुआ था। यहां रामलला का भव्य मन्दिर था।
अयोध्या राम की है, उसे पहले बाबर ने तोड़ा। उसके तोड़ने की सजा
भी आज पुनः बाबरी मस्जिद की मांग करने वालों को दी जानी चाहिए।
जिन्होने इसके नाम पर वर्”ाों तक दे’ा में अस्थिरता के साथ-साथ डर
और दह’ात का माहौल बनाये रखा है। .

23.1.10

सूचना क्रान्ति की बयार और गरीब

देsh में बह रही है आज
सूचना क्रान्ति की बयार
10 प्रतिshत लोग ही,
जो हैं इसपर सवार

90 प्रतिshत लोग
जहां खड़े थे-वहीं खड़ें हैं,
गरीबों में कोई बदलाव नहीं
वो जहां पड़े थे-वहीं पड़े हैं।

यह क्रान्ति हुई अमीरों की
जो बढ़े- दिन दूनी रात चैगनी रफ्तार
अरबपति खरबपतियों की-
लखपति करोड़पतियों की पांत में- हुए suमार

इस सूचना क्रान्ति रथ पर
गरीब नहीं-सिर्फ अमीर ही चढ़े हैं
डिजिटल डिवाइड करके गरीबों का
इस टाइम की मshीन पर अमीर ही बढ़ें हैं

यह सूचना क्रान्ति गरीबों के नाम की
उन्हे बिना छूए ही निकल रही
90 प्रतिshत आबादी देsh की
और नीचे को फिसल रही

ये क्रान्ति सिर्फ उन्ही की है
जो लैस थे हर संसाधन से
वही खाई बनाते आगे बढ़ रहे
जहां पहले ही सारे साधन थे

अब गरीब और अमीर में
और.....चैoड़ी हो रही खाई
सैंकड़ों सालों में भी
न पाट सकोगे भाई

ये परिदृsय है
सबसे खतरनाक,
वर्ग भेद को कम करने का
मौका न गवाओ आज।
(सुरेsh त्रेहण-9811910506)

नंगई का नंगा नाच और हैवानियत की कड़ी टेलीविज़न

बच्चे, मां-बाप या हों दादा-दादी
देखते मिलकर टेलीविजन को,
अब shर्म..... भी नही आती

दूरदर्shन और डिजिटल टी.वी
दिखाते गाने, फिल्में और चित्रहार,
जो मनोरंजन के नाम पर सैक्स वल्गारिटी है
कर रहे हमारा चरित्रहार।

जो हमें ये दिखाते हैं,
वही हम करते जाते हैं,
क्या यही है हमारी समाज संस्कृति
जिसे विरासत से हम पाते हैं ?

यह है विदेshiयों का shड़यन्त्र,
हमारे विरूद्ध साजिsh है एक
भ्रsट कर दो संस्कृति भारत की,
रह न जाए कोई एक

विदेshiयों को है मालूम,
पैदा होते यहां तिलक और विवेकानन्द
कर दो नस्ल खराब भारत की
बन न सकें फिर भगत सिंह और दयानन्द

इसी लिए तो सबसे पहले, ये टेलीविज़न को लाये
चढ़ जाए नौज़वानों पर खुमार एैसा
न तिलक पैदा हों, न भगत सिंह आये ।

यह सैक्स का जादू
भारतवासियों को कर रहा बर्बाद,
सच्चाई को समझो........ यारों....
इसके प्रचारक यूरोप-अमरीका भी हैं नहीं आबाद।

देsh भर में बलात्कारों की संख्या
दिन-दुगनी रफतार से बढ़ी हंै
टेलीविज़न, दूरदर्shन और केबल चैनल ही
इस राक्षसीपन, हैवानियत की कड़ी हैं।

अगर.... आपका खो जाए धन!
तो इन्सान पुर्ति कर सकता है
लगाके सुझ-बुझ और अपना तन-मन।

अगर..... आपका स्वास्थ्य हो जाए खराब!
उसे लाया जा सकता है
पूर्व स्थिति में करके ईलाज।

लेकिन जब हो जाए.....चरित्र का पतन !
ते बचता नही shesh, चाहे लाख करता रहे यत्न।

बचपन में हम पढ़ा करते थे....
इफ वेल्थ इज़ लाॅस्ट.. नथिंग इज़ लाॅस्ट
इफ हैल्थ इज़ लाॅस्ट.. समथिंग इज़ लाॅस्ट
बट कैरेैक्टर इज़़्ा लाॅस्ट.. एवरीथिंग इज़ लाॅस्ट...
(सुरेsh त्रेहण)

लगाओ नीम का पेड़, जो चन्दन से कम नही ।

लगाओ नीम का पेड़ ,
जो चन्दन से कम नही ।
है 250 बिमारियों का- अचूक ईलाज,
न हो डाॅक्टर ...तो कोई गम नही।।

इसे होती है जरूरत
पानी की कम ,
तीन वर्षो में बढ़ जाता इतना
तैयार पाते हैं हम।

इसकी दातून से करो
अपने दांत साफ ,
दांतों में होगी- न कोई बिमारी
दिन भर रहेगा तरो ताजा दिमाग।

नीम की पत्तियों का रस
है भूख बढ़ाने वाला ,
इसके सेवन से मर जाते
पेट के कीड़े- है राहत दिलाने वाला।

फोड़े - फुन्सियों के लिए
है नीम की छाल ,
गर ऐंटीसेप्टिक बनानी हो
लो पत्तियां उबाल ।
फिर उससे करो नहान,
डिटोल फेल है
है नीम का पेड़ महान ।

नीम की सींक और
काली मिर्च का काढ़ा ,
बुखार जैसा भी हो- भाग जाता है
चाहे आता हो - लेकर जाड़ा ।

नीम के बीजों से
होता नहीं बहुमुत्र (डायबिटिज)
क्षय रोग-कुष्ठ रोग को
दूर करने का-है महत्वपूर्ण सूत्र।

सिर दर्द में होता है
नीम का तेल गुणकारी ,
इसकी छाया में सोने से
आती नही बिमारी ।

नीम का तेल
खाज-खुजली के लिए
होता - रामबाण ,
ये जोड़ों के दर्द में भी
पहुंचाता आराम ।

वर्ष में दो बार जो
पत्तियाँ खा ले इन्सान,
निरोग रहता है वो
बेशक न रख्खे वो अपना ध्यान।

नीम की सूखी पत्तियों को रखने से
आते नहीं झींगुर,
दीमक दूर हो जाते हैं
किताबों, कपड़ों से
अनाज में लगते नही घुन।

खेती के लिए
नीम की खली से बढ़कर
दुनियां में कोई कीटनाशक नही,
फसलें लहलहा उठती हैं खेतों में
कीड़ों का एैसा- अन्य विनाशक नही।

अगर मच्छरों से हो तंग
नीम की सूखी पत्तियाँ
सुलगा दो,
कम्पोस्ट खाद बनानी हो
तो इसके कूड़े-
करकट को सड़ा दो।

नीम सबसे बड़ा
एन्टीसेप्टिक और गन्धक
का भंडार है ,
नीम कुदरत का हमें
एक अनुपम वरदान है।
नीम का पेड़
सचमुच महान है ।

बरनौल, डिटोल, फिटकरी से भी
ज्यादा असरकारक है नीम,
कैल्शियम,प्रोटीन,लौह तत्व,विटामिन-ए
का भंडारक है नीम ।

रात-दिन आॅक्सीजन देता है नीम
हमसे लेता नही कुछ
सिर्फ देता है नीम।

अगर एक नीम का पेड़
लगाते हैं आप ,
अपने घर की 250 बिमारियों को
भगाते हैं आप ।

जे लोग करते हैं ब्रश
उन्हे दाँतों की बिमारी हो जाती है,
ये टूथपेस्टें -दूर करती नहीं सड़न
उल्टा दांतों को सड़ा जाती हैं।

बंद करो इनको
करो दातून अब नीम की ।
मुक्ति मिलेगी मुंह की बिमारियों से
नही जरूरत पड़ेगी
डाक्टर और हकीम की ।।

अगर आप दातून करेंगें
बिकेंगी ये बाजार में ,
कईं गरीबों का होगा गुजारा
हो जायेगी तरक्की- उनके व्यापार में ।

दातून करो नीम की
करो नीम के पेड़ आबाद !
नकली टूथपेस्टों और दंतमंजनों में
रूपया न करो बर्बाद ।।

नीम के पेड़ के गुण होते हजार
लोगों को बतलाओ ,
अपने प्रत्येक जन्म दिन पर
कहीं न कहीं-
एक नीम का पेड़ लगाओ।
(सुरेsh त्रेहण)

इसे गण तंत्र दिवस कहें या तंत्र गण दिवस

जी हाँ, दुनियां का सबसे बड़ा गणतंत्र भारतवर्sh एक बार फिर अपना
‘कथित’ गणतंत्र की वर्shगांठ मना रहा है। देsh के गण को भ्रsट तंत्र
के जरिए महँगाई, आतंकवाद साम्प्रदायिकता, वर्ग संघर्sh और आर्थिक
गुलामी के कैदखानों में धकेल देने वाला ये तंत्र हर बार की तरह इस
बार भी तिरंगे के आगे अपना सिर झूकाएगा। और देsh के गण के
विकास के लिए खोज की गईं नई-नई योजनाओं का व्याख्यान करेगा।
अनेक कार्यक्रमों की घोshणाएं होंगी। चमचे उनकी वाह-वाही करेंगे।
और दीन-हीन भारत की जनता एक बार फिर ठग ली जाएगी साथ
ही सोचने को मजबूर होगी, कि यह किन गणों के लिए तंत्र के द्वारा
कैसा दिवस मनाया जा रहा है? आज भी देsh की आम जनता ‘गणतंत्र’
का मायने तलाsh कर रही है। क्या गणतंत्र का मायने देsh के गणों की
भूख और गरीबी दूर करने की रकम से प्रतिवर्sh सैंकड़ों करोड़ खर्च कर
तंत्र के ऊँचे पदों पर आसिन जनों का, दुनियां वालों को अपना-आपा
और अपनी ताकत दिखाने का जनून है? जिन्होने अपनी सत्ता के लिए
देsh के एक-एक गण को विsव बैंक के पास गिरवी रखते हुए, जाति
और समुदाय में बांट कर रख दिया। जब हमारा संविधान बना था, तो
सबकी समानता की बातें कही गईं थी। लेकिन सत्ता के लिए उसमें
इतने संshoधन कर दिए गये कि आज संपूर्ण भारतीय समाज-जाति
और समुदायों में बंटते हुए, सरकारी नौकरियों या अन्य लाभ पाने के
लालच में दूसरे समुदायों और जातियों को समाप्त कर देने के लिए
अपनी पूरी ताकत झौंकने लग गया हैं। आज के गणतंत्र में गलत या
भ्रsट तरीकों को न इस्तेमाल करने वाले अधिकारी को ही गलत माना
जाता है। उसे चैन से काम करने नहीं दिया जाता। जबकि देsh का गण
भी यह मानने लग गया है कि ईमानदार और रिsवत न लेने वाले
अफसर से, कहीं रिsवतखोर, भ्रsटाचारी अफसर ही अच्छा है, जो
रिsवत लेकर काम तो कर ही देता है। ये हमारे अपने गणतंत्र की
उपलब्धि ही तो है! हमारे विshaल गणतंत्र की सत्ता पर आरम्भ से ही
तंत्र को मुट्ठी में रखते हुए, एक ही परिवार काबिज है। उसके क्षत्रप,
मैनेजर या अनुयायी ही अपने तरीकों से देsh के गणों को भरमाते हुए
इस देsh का shaसन चलाते रहे। जबकि नये लोगों, नई युवा पीढ़ी को,
नये विचारों को भी अवसर मिलना चाहिए था। इस बीच अलग-अलग
हिस्सों से कईं गणक्षत्रप उभरे, किन्तु वे भी तंत्र के आगे बेबस रहे।

लड़ रहा गरीब...सदियों से....उसको और न सुलगाओ...

लड़ रहा है सदियों से,
गरीब और कमजोर समाज
हक मांगा जब-जब राजसत्ता से
कहलाया बागी, आंतकी या बदमाsh।

अंग्रेजों से भी वही लड़ा था
थी आजादी की लड़ाई
हो गया आजाद, देsh मगर
उसकी हुई न सुनवाई

आज भी गरीबों का,
है पेट का सवाल
गायब होती जा रही
उसकी रोटी और दाल

‘लोकराज’ तो जा रहा किताबों में
अब विsवबैंक का राज है
हुआ देsh में भ्रsटाचार का जंगलराज
जहां मौज में अमीर, गरीब मोहताज है।

बासठ वर्sh बीत गये
सरकारें रहीं सिर्फ गफलत में
उठने को तैयार है गरीब
अब तुम्हारी नफरत में

गरीब - गरीब क्यों ?
अमीर - अमीर क्यों ?
इस रहस्य को सुलझाओ
गरीब की रोटी की लड़ाई को
अब और न सुलगाओ

नेस्तनाबुद हो जाएंगे भ्रsटाचारी जब
और नकली लोकतन्त्र की मिनारें भी
टूट जाएं सत्ता के गलियारे
ढह जाएं- shहरों की दीवारें भी।

किस-किस को मारेगी सरकार?
कितनों को लटकाएगी सलीब पे?
डेढ़ अरब की आबादी में,
क्या बच पाएगी, सवा अरब गरीब से।
सुरेsh त्रेहण

महँगाई.....महँगाई, और ...र...महँगाई रहम करो अब मन मोहन भाई

महँगाई ने जिस प्रकार राक्षसी तरीके से अपना मुंह फाड़ा है, उससे आम
आदमी का जीना दूभर हो गया है। इन ठंड के दिनों में भी आम आदमी
को घर चलाने में पसीने छूट रहे हैं। कमरतोड़ महँगाई ने लोगों का पसीना
निकाल दिया है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं को तो मानो आग ही लग
गई है। आज हालत ये है कि आम आदमी रोटी और दाल के लिए भी
हलकान है। सरकार बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने में पूरी तरह से
नाकाम हो गई। अब तो देsh की आम जनता को सरकार के कुछ मन्त्री
भी जमाखोरों और पूंजीपतियों के दलाल की भूमिका में नजर आने लगे हैं।
म़न्त्री स्वयं ही देsh के जमाखोरों को सरेआम बताते हैं कि देsh में फलाँ
वस्तु की कमी होने वाली है......तो....! मन्त्री की बात के तुरंत बाद ही
उस वस्तु के दामों में भारी बढ़ोतरी देखने में आयी। और इसी सरकार से
जुड़े लोगों की shह पर महँगाई ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ डाले हैं। पेट
भरने के सामान तेल, आटा, चावल, चीनी, दालों की कीमतें ही नहीं बढ़ी
है बल्कि इसकी आड़ में रोज इस्तेमाल होने वाले सामानों जैसे टूथपेस्ट,
टूथब्रsh, नहाने के साबून, कपड़े धोने के साबून, sheम्पू, वाshinग पाउडर,
अंडर गारमेंट, गारमेंट, जूते, shu पाॅलिsh से लेकर कंघी तक, बसों के किराए,
मेट्रो के किराए बढ़े हैं। shaयद ही अब कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जहाँ भारी
बढ़ोतरी दर्ज न हुई हो। इस देsh का सोभाग्य है या दुर्भाग्य, कि हमारे दesh
के प्रधानमंत्री एक राजनेता के बजाए अर्थshaस्त्री के रूप में ज्यादा जाने-
पहचाने जाते हैं। महँगाई ने उनके अर्थshaस्त्र की बखिया ही उधेड़ कर रख
दी। महँगाई को विकास मानने वाले इस अर्थshaस्त्र के विरोध में अब देsh
का आमजन सड़कों पर आने को तैयार है। वैसे भी सरकार की नीतियों
के विरोध में अनेक राज्यों के लोगों से अनेक स्तरों पर सरकार से सघंर्sh
जारी है। यहां तक की shस्त्र संघर्sh भी। डर है कि महँगाई पर लगाम नही
लगाई गई, तो देsh भर में लूट-खसोट का माहौल न बन जाए।
अब तो हर आए दिन सरेआम छीना-झपटी, चोरी-डकैती की वारदातों का
होना आम बात हो गयी है। लोग बैंकों की नोटों से भरी एटीएम म’ाीनें
भी उठाकर ले जाने लगें हैं। बेshaक पुलिस झूठे दावे और झूठे आंकड़ों के
सहारे सरकार को भरमाती रहे। पर भूगतती जनता सब जानती है।
सरकार द्वारा महँगाई की रफ्तार को पीछे धकेलते हुए, आम आदमी की
सुध लेनी ही होगी। अन्यथा सरकार को आमजन के कोपभाजन के लिए
तैयार रहना चाहिए। अभी-अभी समाचार आया है कि हरियाणा के
ऐलनाबाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार को आमलोगों ने सिरे
से नकार दिया है। वहां सरकार ने आमजनों को लालच की बेshuमार
गुगलियां दी, पर सरकार के ललचाने वाले झांसों में आए बिना उसने
विपक्ष के उमिदवार को ही विजयी बनाया। ज्ञात हो कि हरियाणा में जनता
ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए नही चुना था, पर इस देsh की विडम्बना
है कि मैं कौन तो खामखाह? जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त के सहारे आखिर
कांग्रेस ने सरकार बना ही ली।

भारतीय स्टेट बैंक,‘नजफगढ़ ने मंदबुद्धि बच्चों मेंगर्म जर्सी, जुराबें और कम्बल बांटे

नजफगढ़ 22 जनवरी 2010: नजफगढ़ स्थित भारतीय स्टेट बैंक की
shaखा और यहां कि समाजिक संस्था ‘मराएडो’ ने मिलकर ढिचाऊं
कला गांव के प्रेमधाम में मंदबुद्धि बच्चों के लिए एक कार्यक्रम आयोजित
किया। जिसमें प्रमुख अतिथि नजफगढ़ के विधायक चैधरी भरत सिंह
के हाथों से सैंकड़ों मंद बुद्धि बच्चों को गर्म जुराबें, गर्म जर्सियां और
अच्छे कम्बल दिए गये। इस अवसर पर shaखा प्रबन्धक जी एस.सांगी ने
उपस्थित जनसमूह को विsवास दिलाते हुए कहा कि ऐसे सामाजिक
कार्यों में भारतीय स्टेट बैंक की नजफगढ़ shaखा हमेsha से ही अग्रणी
रही है, और आगे भी अग्रणी ही रहेगी। इस कार्यक्रम में उपस्थित
विsishट अतिथियों में नजफगढ़ की निगम पाrsर्द श्रीमति सुधा sर्मा व
प्रसिद्ध समाजसेवक रणबीर sर्मा के अतिरिक्त अनेक गणमान्य व्यक्तियों
ने भाग लिया। जबकि यह कार्यक्रम, बैंक के सहायक प्रबन्धक एस.के.
पंडित, रमेsh बागड़ी, सुनील यादव, एम.एम. जैन की देखरेख में सम्पन्न
हुआ। (सुरेsh त्रेहण)

बेटी कहे पुकार के..... मत मारो मुझे कोख में

बेटी कहे पुकार के
माँ मुझे जीने दो
न मारो मुझे कोख में
मुझे जीवन दान दो
क्यों छीनो तुम
हक मेरा ‘जीने का’,
मूझे जन्म दो माँ पाऊं मैं
सौभाग्य खुलेे में सांस लेने का।

भाई की उंगली पकड़कर खेलूं मैं
पिता का प्यार पाने दो,
न मारो मूझे तुम कोख में
मूझे जीवन दान दो।

लड़कियां ! माँ बाप की सेवा करतीं
सदाचार से वो जीवन बितातीं,
थकती हैं तो shiकायत न करतीं
कभी किसी को नहीं सतातीं

विधाता की सौगात है सच्ची
नवदुर्गा का रूप है बच्ची
कन्या दान है महादान

न मारो इनको करो ये बलिदान

गर हो जाए बेटी,
हर घर का सपना
बदल जाएगा देsh
और साथ में समाज अपना

13.1.10

गैस

गैस एजेंसियों की बदमाशी की खुली पोल

उपभोक्ता कभी भी भरा हुआ गैस सिलेण्डर प्राप्त कर सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गैस कम्पनियों की ओर से दो बार गैस लेने के बीच दिनों के अंतराल की कोई बाध्यता लागू नहीं है।

हर गैस एजेंसी पर गैस बुक कराने पर बताया जाता है कि अगला सिलेण्डर १८ य २१ दिन के अंतराल के बाद ही मिलेगा। वास्तविकता यह है कि किसी गैस कम्पनी क ऐसा कोई नियम ही नहीं है। दसियों साल से यही बताया जाता रहा है। १८ और २१ दिन बाद नया भरा गैस सिलेण्डर देने का नियम गैस एजेंसियों ने अपने लाभ के लिए स्वयं बनाया है। गैस कम्पनियों की ओर से उपभोक्तों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाया गया है। उपभोक्ता अपनी ज़रूरत के अनुसार कभी भी बुक कराकर गैस ले सकता है। यह जानकारी सूचना के अधिकार के अन्तर्गत इण्डियन ऑयल और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम की ओर से दी गयी है।

इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पत्र- पीएसओ/एलपीजी/आरटीआई दिनांक १६ दिसम्बर, २००९ में यह कहा गया है उपभोक्ता कभी भी भरा हुआ गैस सिलेण्डर प्राप्त कर सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गैस कम्पनियों की ओर से दो बार गैस लेने के बीच दिनों के अंतराल की कोई बाध्यता लागू नहीं है। यही नियम कमर्शियल गैस सिलेण्डरों के लिए भी है। हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरशन के पत्र- एलपीजी/एसएम/आरटीआई दिनांक १२ दिसम्बर, २००९ में भी यही बात कही गयी है।

सूचना के अधिकार पर काम करने वाले आरके गर्ग ने गैस एजेंसियों की मनमानी की असलियत जानने के लिए आरटीआई के अन्तर्गत प्राप्त की है। आमजन को सजग बनाने के लिए यह जानकारी वेबसाइट (यहां क्लिक करें) www.rtiindia.org पर भी उपलब्ध है।
इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन का टोल फ़्री नम्बर १८०० २३३३ ५५५ 1800 2333 555
प्रस्तुति: विशाल

7.1.10

पानी

पानी रे पानी तेरा रंग देखा
पानी का संकट विश्व व्यापी है। इसके लिए जिम्मेदार भी हमारा आचरण ही है। असीम गंदगी फैलाने के बाद नदी-तालाबों की सफाई की ओर ध्यान दिया जा रहा है पर इसमें भी कर्त्तव्य के स्थान पर धंधा शामिल है। सैकड़ों करोड़ के खर्च के बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात बना रहता है। फिर नयी योजनाएं बनती हैं, कर्ज लिया जाता है पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो पाता। आमजन वोट देने के बाद अपनी भूमिका से निवृत हो जाता है|

आजकल पानी एक चर्चा का विषय बन चुका है। पीने योग्य पानी यानी पेय जल को लेकर पूरी दुनिया में चिन्ता पसरी हुई है। कहा यह भी जा रहा है कि अगला विश्व हुआ तो वह पानी को लेकर ही होगा। यह स्थिति तब है जब धरती का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से भरा हुआ है। गांव हो या शहर सभी जगह पानी की परेशानी दिखाई देती है। पानी को लेकर एक परेशानी उसके प्रदूषित होने से भी है। विश्व के कुल पानी का लगभग 97 प्रतिशत समुद्री पानी है जो पीने लायक नहीं है।
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केवल २५ रुपये में ५०० मिली. पानी


पेय जल के रूप में उपयोग किया जा सकने वाला नदियों, झीलों, तालाबों आदि के अलावा वर्फ के रूप में मौजूद और भूमिगत जल है। सिंचाई में पानी एक बड़ा भाग प्रयुक्त होता है। इसके अलावा vibhinn उद्योगों और अनेक अन्य कार्यों में भी काफी मात्रा में पानी काम का उपयोग होता है। पानी और उसके उपयोग-दुरुपयोग के अलावा इसके निरन्तर प्रदूषित होते जाने को लेकर अब अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं जो विश्व व्यापी हैं। दूसरी बड़ी समस्या है विभिन्न स्थानों पर पानी की उपलब्धता में भारी अन्तर का होना। हमारे देश में भी पानी की असमान उपलब्धता मौजूद है। कहीं पानी अच्छी मात्रा में उपलब्ध है तो कहीं पानी की बेहद कमी है।

गर्मी के मौसम में अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं। फलस्वरूप जल संकट गहरा जाता है। पानी के बंटवारे को लेकर राज्यों में तकरार शुरू हो जाती है। देश की नदियों को परस्पर जोड़कर जल की असमानता की समस्या का हल निकालने के लिए सन् 1952 में नेशनल वाटर ग्रिड की स्थापना की गयी। पर यह योजना सफल नहीं हो सकी। कुछ साल पहले भी नदियों को जोड़ने की योजना तैयार हुई पर यह भी अभी तक सिरे नहीं चढ़ी है।

अनुमान है कि कुछ समय में ही ऐसी स्थिति हो जाएगी कि विश्व के लगभग 40 देशों में पानी का भारी संकट उत्पन्न हो जाएगा। आज भी हमारे यहां अधिकांश क्षेत्रों में जरूरत से काफी कम मात्रा में लोगों को पानी मिल पा रहा है। गांव हो या शहर कमोवेश एक जैसी ही स्थिति देखने को मिलती है। बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती जरूरत के अनुपात में पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। बदलते मौसम के मिजाज के लिए लोगों का आचरण भी कम जिम्मेदार नहीं है।

पानी की दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था, रिसाव आदि के चलते नियमित रूप से काफी बरबादी होती है। वितरण व्यवस्था में सही बदलाव लाकर सुधार करने में खर्च भी काफी होगा। दशकों पुरानी पाइप लाइनों को बदलना आसान काम नहीं है। स्थानीय स्तर पर पानी की व्यवस्था करने के लिए प्रयुक्त होने वाला जमीनी पानी अब जमीन के काफी नीचे पहुंच गया है। जिन स्थनों पर मात्र 1 दशक पहले 40-45 फुट गहराई में पानी उपलब्ध था, वहीं अब लगभग 200 फुट खोदने पर भी पानी नहीं मिलता। यही नहीं गुजरात में कच्छ क्षेत्र में खोदे गये 10 में से 6 नलकूपों में 1200 फुट जमीन के नीचे भी पानी नहीं मिला। अनेक नगरों में स्थानीय प्राशासन द्वारा लगाए गये हैंडपम्प बेकार हो चुके हैं। पानी को लेकर परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। जगह-जगह ट्रेनों और टैंकरों से पानी पहुचाना पड़ रहा है। यही व्यवस्था राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों के करीब 128 गांवों के निवासियों के लिए जीवनदायिनी बनी हुई है।

पानी आज एक फलताफूलता व्यवसाय है। मोटे मुनाफे को देख इस क्षेत्र में हर लल्लूपंजू कूद पड़ा है। प्रकृति प्रदत्त जल की मुफ्त उपलब्धता आमजन के लिए दूभर होती जा रही है। पानी का व्यवसाय विश्व के लगभग 130 देशों में जमकर हो रहा है। यही नही, झील, तालाब और जमीनी पानी सब इन धंधेबाजों के कब्जे में है और सम्भावना भी यही है कि आने वाले समय में पूरी तरह इन्हीं के कब्जे में हो जाएगा। जल की आपर्ति से अधिक उसकी आवश्यकता है। सम्पन्न लोग विभिन्न कार्यों में पानी की आवश्यकता से कहीं अधिक खपत करते हैं। यह सीधेसीधे पानी का दुरुपयोग है।

देश के अनेक भाग ऐसे हैं जिनमें कुछ में जल्दी ही और कुछ क्षेत्रों में थोड़े वर्षों में ही पानी की उपलब्धता के बराबर हो जाएगी। ऐसा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु आदि राज्यों के अनेक क्षेत्रों में आज नहीं तो कल जल संकट उत्पन्न होना ही है। नदियों का यह हाल है कि उनमें कारखानों के करोड़ों लीटर दूषित पानी को बहा दिया जाता है। शहर-कस्बों के नाले नदियों में गिर रहे हैं। अनेक नदियां ऐसी हो गयी हैं कि उनका पानी पीने की बात छोड़िए नहाने लायक भी नहीं रह गया है। बढ़ती शराब की खपत के कारण अधिक शराब बनायी जाती है। सरकारों को टैक्स मिलता है, निर्माता जमकर धन कमाते हैं। पर शराब निर्माण के दौरान प्रयुक्त हुआ पानी प्रायः पास की नदी में बहा दिया जाता है। यही हाल कपड़ों की रंगाई फैक्टरियों, टैनरिओं और अन्य उद्योगों का है। सिर्फ नियम-कानून बनाने से सब ठीक नहीं हो जाता। उन पर अमल करने-कराने की इच्छाशक्ति भी सम्बन्धित व्यक्तियों में होना जरूरी है।

प्राकृतिल जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और नष्ट किये जा रहे हैं। उन स्थानों की ज़मीन का रिहायशी और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। बहुमंजिले भवन खेतों, जंगलों और हरियाली को निगलते जा रहे हैं। धन्नासेठ और भ्रष्ट लोग सड़क किनारे की और अन्य उपजाऊ जमीन खरीदकर अपना कब्जा किए जा रहे हैं।

पानी की पहचान बोतल और टैंकरों में सिमटती जा रही है। होना यही है कि जिसके पास पैसा है, पानी उसका। घर से बाहर निकलकर आप बस स्टॉप, बस अड्डा, बाजार, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, शापिंग माल, सिनेमा हाल, सरकारी-गैरसरकारी दफ्तर या जहां कहीं भी जाएं राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पानी की बोतलें मिलेंगी या ठंडे पेय की बोतलें। इनके लिए पानी है जिसके लिए आपको अच्छी खासी रकम चुकानी पड़ती है। भूल जाइए कि स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाएं और समर्थ लोग आपके लिए प्याऊ बनवाकर मुफ्त पानी उपलब्ध कराकर आपकी प्यास बुझाएंगे। पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने का पुण्य अब कितने लोग कमा रहे हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। बचीखुची प्याऊ भी कुछ समय बाद गायब हो जाएंगी। पानी की बोतल सम्बन्धित कम्पनी के प्रचार से बनी छवि के अनुरूप आपक व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग बनती जा रही है।
पानी का संकट विश्व व्यापी है। इसके लिए जिम्मेदार भी हमारा आचरण ही है। असीम गंदगी फैलाने के बाद नदी-तालाबों की सफाई की ओर ध्यान दिया जा रहा है पर इसमें भी कर्त्तव्य के स्थान पर धंधा शामिल है। सैकड़ों करोड़ के खर्च के बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात बना रहता है। फिर नयी योजनाएं बनती हैं, कर्ज लिया जाता है पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो पाता। आमजन वोट देने के बाद अपनी भूमिका से निवृत हो जाता है। इसके बाद हमारे जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका यदि सही ढंग से निभाएं तो स्थिति में काफी बदलाव सकता है। यह सर्वविदित है कि स्वार्थ और धन के लालच से अपने कर्त्तव्य से विचलित होने में कितनी देर लगती है!
• टी.सी. चन्दर
सहयात्रा