24.9.10

भगवा पर उंगली उठाने वाले ये जान लें कि....‘‘भगवा ही भारत का व्यक्त्तिव है’

हमारे दे’ा की राजनीति आज इतनी गन्दी हो गई है, जब कभी भी अल्पसंख्यक वोटों को पाने की बात हो, या उनको खु’ा करने की बात, मुसलमानों, ईसाइयों के विरूद्ध होने वाली प्रायः हर बात के लिए आंख मूंद कर उसका दो”ा भगवा पर मढ़ दिया जाता है। झट-पट कह दिया जाता है कि इस काम में भगवा के लिप्त होने की बू आ रही है। बे’ाक आप आरोप लगाएं, हमारे लोकतन्त्र में आरोप-प्रत्यारोप लगाने की परम्परा भी है। आरोप संगठन या दल का नाम लेकर लगाना चाहिए, न कि भगवा पर। यहां हर कोई अपना उल्लू सीधा करने के लिए, अपनी कमियों कोछुपाने के लिए, जनता का ध्यान बांटने के लिए किसी पर भी आरोप लगा देता है। बे’ाक उन आरोपों में एक प्रति’ात की भी सच्चाई न हो। जहां तक भगवा का सवाल है, यह हर ऐरे-गेरे को, जो बात-बेबात पर भगवा पर उंगली उठाने से बाज नही आता, उनको जानना चाहिए कि ‘‘भगवा ही भारत का व्यक्त्तिव है’ भगवा कोई रंग नहीं है। ये तो थोड़ा पीला, थोड़ा नारंगी और थोड़ा लाल मिलाकर भगवा बना। बिल्कुल आते-जाते सूरज जैसा। तेज आग की लपट जैसा। सदियों से भगवा भारत के ‘ाोर्य का प्रतीक है। भारत ने अपने इस प्रतीक को जल्दबाजी में नहीं चुना है बल्कि इसको चुनने में अध्ययन था। अनुभव था। अनुभतियां थी। योग था। प्र’न थे। तर्क और वितर्क थे। नि”कर्”ा थे। इसी में से अध्यात्म आया। इसी की अभिव्यक्ति हुई भगवा में। यह संसार जीत का प्यासा है। जहां हार कर लौेटने वाला दुखी और जीत कर लौटने वाला खु’ा होता है। परन्तु भारत दे’ा ही एक एैसा दे’ा रहा जहां जीत कर भी जीतने वाले का चित्त उदास ही रहा। वह दुखी था। राम रावण को जीत कर लौटे। तो उदास थे। महाभारत के विजेता भी युद्ध जीत कर उदास हुए। हिमालय चले गए। सम्राट अ’ाोक कलिंग जीत कर उदास हो गया। वह अ-’ाोक था वही ‘ाोकग्रस्त हो गया। वह बौद्ध हो गया। जीत कर उदास होने और हार कर फिर बार-बार लड़ने का रहस्य सिर्फ भारत के पास ही था। वह भगवा था। भारत के व्यक्तित्व, भारत के प्रतीक, भारत के प्रतिमान और भारत की परम्परा को नि’ााना बनाकर उस पर आरोप- प्रत्यारोप करने से कोई नई उपलब्धि नही मिलने वाली। आज पूरी दुनियां दो के संघर्”ा पर टिकी हुई है ‘ाुभ-अ’ाुभ, सत्य-असत्य, पदार्थ-परमात्मा, उंच-नीच में। ईसाइयत, यहूदी और इस्लाम भी स्वर्ग-नर्क के द्वन्द पर आश्रित हैं। पर भारत ने ही सिर्फ इस द्वन्द को पार कर तीसरे तत्व को पाया। स्वर्ग और नर्क के कर्मों से। उसने मोक्ष को प्रतीति दी। इसके पीछे की ‘ाक्ति भगवा ही थी। सभी ‘ाक्तियों का सार है भगवा।

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