24.9.10

बाबर कोई मसीहा नही था।

अयोध्या के विवादित परिसर के मालिकाना हक के फैेंसले को न्यायालय
ने सुरक्षित रखते हुए 24 सितम्बर को सुनाने की बात कही थी। फेंैसला
आने से पहले ही सरकार ने दे’ा की जनता को डराना ‘ाुरू कर दिया
कि इस फैेंसले के आने के बाद कहीं कुछ भी हो सकता है। स्वयं दे’ा
के गृह मन्त्री पी. चिदम्बरम टीवी चैनलों के माध्यम से जनता को संयम
बरतने की सलाह देते नजर आए। जबकि दोनों पक्ष के प्रतिनिधियों द्वारा
अदालत का फेैंसला मान्य होगा कि बार-बार घो”ाणाएं होती आ रही हैं।
कहीं भी तनाव जैसी बात ही नही थी, पर सरकार ने स्वयं दे’ा की
जनता को इस मामले को संवेदन’ाील बता-बताकर संवेदन’ाील बना
दिया है। सरकार की पहल से अब लगता है कि बाबर के वं’ाज
अक्रान्ता का मकबरा या मस्जिद बनाकर ही दम लेंगे, जबकि हिन्दू भी
रामलला की एक इंच भूमि छोड़ने को तैयार नही। फेैंसला जो भी हो,
इसे सरकार कहां तक अमल करवा पाती है यह देखने योग्य बात होगी!
आज चारों तरफ यही सुगबुगाहट है कि अपने वोटों की खातिर सरकार
रामलला के फेैंसले को ठंडे बस्ते में न डाल दे ?
अयोध्या में मस्जिद/ मकबरा बनेगा या राम मन्दिर ? मुसलमान चीख-
चीख कर कह रहा है कि निर्णय मुसलमानों के पक्ष में होना चाहिए,
क्योंकि वे बेचारे हैं, अल्पसंख्यक हैं, कांग्रेस के साथी हैं। उनकी
आस्थाएं हिन्दुओं की आस्थाओं से अधिक महत्व की हैं। मुझे मुसलमानों
की सोच पर आ’चर्य होता है कि कैसे एक क्रूर विदे’ाी आक्रमणकारी
का मकबरा या मस्जिद बनाने के नाम पर अपना सिर पीट रहे हैं। हाय
तौबा मचा रहे हैं। एक बड़ा सवाल है कि - क्या अत्याचारियों की भी
पूजा होनी चाहिए ? क्या अत्याचारियों के स्मारकों के लिए अच्छे लोगों
के स्मारकों को तोड़ देना चाहिए? ( कथित बाबरी मस्जिद भी श्रीराम
लला के मन्दिर को तोड़कर बनाई गई थी ), क्या लोगों की हत्या
करने वाला भी किसी वर्ग वि’ो”ा का आदर्’ा हो सकता है ? रावण
प्रकाण्ड पंडित था, लेकिन बहुसंख्यक हिन्दु समाज का आदर्’ा नहीं। कंस
बहुत ‘ाक्ति’ााली था, लेकिन वह भी कभी हिन्दुओं का सिरोधार्य नहीं
रहा। हिन्दुओं ने कभी भी अत्याचारियों के मन्दिर या प्रतीकों के निर्माण
की मांग नही की। फिर एक अत्याचारी, अनाचारी, विदे’ाी आक्रमणकारी
का मकबरा या मस्जिद क्यों बननी चाहिए ? इतिहास में दर्ज है कि
काबूल - गांधार दे’ा, जो आज अफगानिस्तान की राजधानी है। 10वीं
‘ाताब्दी के अंत तक गांधार और प’िचमी पंजाब पर लाहौर के हिन्दू
’ााही राजवं’ा की हकूमत थी। सन् 990 ईसवी में काबुल पर तुर्क के
मुसलमानों का अधिकार हो गया, फिर उन्ही तुर्क मुसलमानों ने मेहमूद
गजनवी के नेतृत्व में काबुल को आधार बनाकर भारत पर बार-बार हमले
किए। उसके बाद 16वीं ‘ाताब्दी में मध्य ए’िाया के एक छोटे से मुगल
( मंगोल ) ‘ाासक बाबर ने आकर काबूल पर अधिकार जमा लिया।
वहां से वह आगे बढ़ता हुआ भारत आ गया और सन् 1526 में पानीपत
की पहली लड़ाई में विजयी हो कर दिल्ली का मालिक बन बैठा। पर
उसका दिल दिल्ली में नही लगा, और वह चार साल बाद 1530 ईसवी
में मर गया। उसके ‘ाव को काबूल ले जाकर दफनाया गया। इसलिए
उसका मकबरा भी वहीं है। आज उस मकबरे की हालत जीर्ण‘ाीर्ण है।
उसकी देखभाल करने वाला भी कोई नही है। बलराज मधोक ने अपनी
पुस्तक ‘‘जिन्दगी का सफर-2’’ में लिखा है कि जब मैं काबूल में बाबर
के मकबरे को देखने गया तो उस खस्ता हाल मकबरे की हालत देखकर
वहां के लोगों से पूछा कि इस मकबरे की हालत एैसी क्यों है?
तो वहां के एक व्यक्ति ने बलराज मधोक को अंग्रेजी में जवाब दिया था
कि ‘क्मउदमक वितमपहदमत ूील ेीवनसक ूम उंपदजंपद ीपे
उंनेंसमनउण्’’ इसका मायने कि इस विदे’ाी हमलावर के मकबरे
का रखरखाव और देखभाल हम क्यों करें? काबूल के लोगों के लिए
भी वह विदे’ाी ही था। वह छोटे से फरगान राज्य से आया था। परन्तु
यह कैसा दुर्भाग्य है कि जिसे काबूल के लोग विदे’ाी आक्रमणकारी,
आततायी मानते हैं, उसे हिन्दुस्तान की सरकार और भाड़े के बुद्धिजीवी
हीरो मानते हैं ? और उस बाबर के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर को
तोड़ कर बनाई गई अवैध बाबर की बाबरी मस्जिद को बनाए रखने में
अपनी ‘ाान और बड़प्पन मानते है, जबकि उसका मालिकाना हक बहु
संख्यक हिन्दुओं का है। फेंैसला भी हिन्दुओं के हक में ही आना चाहिए।
क्योंकि यहां राम का जन्म हुआ था। यहां रामलला का भव्य मन्दिर था।
अयोध्या राम की है, उसे पहले बाबर ने तोड़ा। उसके तोड़ने की सजा
भी आज पुनः बाबरी मस्जिद की मांग करने वालों को दी जानी चाहिए।
जिन्होने इसके नाम पर वर्”ाों तक दे’ा में अस्थिरता के साथ-साथ डर
और दह’ात का माहौल बनाये रखा है। .

2 टिप्‍पणियां:

  1. अब इसी से अन्दाजा लगाइये कि बाबर को आदर्श मानने वालों की मानसिकता क्या होगी....

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  2. बाबर को अपना आदर्श मानने वालों की मानसिकता क्या होगी, इसका अन्दाजा आसानी से लगाया जा सकता है....

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