13.2.11

ताजमहल मकबरा नहीं बल्कि हिन्दूओं के अराध्य भगवान SHIव का ‘तजोमहालय’ था....

सारी दुनियां आजतक इस धोखे में है कि आगरा में स्थित ताजमहल को मुगल बादshaह Saहजहां ने बनवाया था।
तथ्यों से परे यह कोरा झूठ है...... यह उस वक्त के चापलूस इतिहासकारों द्वारा बादshaह Saहजहां की चापलूसी
में गढ़ी गई मुमताज और Saहजहां की प्रेम कहानी झूठी थी।
आगरा का ताजमहल वास्तव में हिन्दूओं के अराध्य देव भगवान Shiव का ‘तजोमहालय Shiवालय’ था!      इस तजोमहालय Shiवालय की भव्य सुन्दरता को देखकर  Shaहजहां ने अवैध तरीके से जयपुर के तत्कालीन महाराज से छीनकर कब्जा कर लिया.....और........
उस वक्त Shaहजहां के दरबारी लेखक ‘‘ मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ’’ ने अपने ‘‘बादshaहनामा’’ में मुगल बादshaह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से अधिक पन्नो में लिखा है.....जिसके खण्ड एक के पृsठ संख्या 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि ‘’Shaहजहां की बेगम मुमताज-उल-जमानी जिसे मृत्यु के बाद  बुरहानपुर (मध्यप्रदेSH) में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद तारीख 15. जमदी-उल-अउवल दिन Shuक्रवार के दिन अकबराबाद (आगरा) लाया गया....फिर उसे जयपुर के महाराजा जयसिंह से छीन ली गयी इस Shaनदार इमारत (तजोमहालय) में पुनः दफनाया गया।  ‘‘मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल (तजोमहालय) से बेहद प्यार करते थे.. पर बादshaह के दवाब के आगे वह इसे देने को तैयार हो गये... इस बात की पुsटी के लिए आज भी राजा जयसिंह के गुप्त संग्रह में वे आदेsh रक्खे हुए हैं
जो Shaहजहां द्वारा ‘तजोमहालय’ भवन को समर्पित करने के लिए बादshaह ने राजा जयसिंह को दिए थे।
....यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम Shaसकों के समय में उनके कुनबे और दरबारियों के लोगों के मरने के बाद
उन्हे दफनाने के लिए....छीनकर कब्जे में लिए गए हिन्दू मन्दिरों और भवनो का प्रयोग किया जाता था।
हुमायूं , अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग जैसे मुगल बादshaह भी एैसे भवनों में ही दफनाये गए हैं....
प्रो. ओक ने भी अपनी खोज में लिखा कि ‘महल’ ‘ाब्द अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक, किसी भी
मुस्लिम देesh में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता है...
यहां यह बात भी झूठी लगती है कि ‘महल’ ‘ाब्द मुमताज महल से लिया गया है
इसके लिए पहली बात यह है कि......Shaहजहां कि पत्नी का नाम मुमताज महल था ही नही ..बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-जमानी था...  दूसरी बात ......कि किसी भी भवन का नामकरण.. किसी महिला के नाम पर रखने के लिए मुमताज का नाम ‘मुम’ को छोड़ ‘ताज’ का प्रयोग करने का क्या तुक है...जो नाम का आधा भाग है....!  प्रो. ओक के अनुसार आज का ताजमहल हिन्दूओं के अराध्य स्थान तजोमहालय (भगवान Shiव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है।  इस तरह प्रो. ओक के अलावा भी दुनियां भर के अनेक इतिहासकार इसी बात प्रत्यक्ष समर्थन करते हैं।  भगवान Shiव का मन्दिर (तजोमहालय) यानि आज का ताजमहल मुगल बादshaह के युग से लगभग 300 वर्S पहले से ही था, जो आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था।
--- न्यूयार्क के पुरात्वविद प्रोफेसर मर्विन मिलर ने 1985 में ताजमहल के यमुना की तरफ के दरवाजे की लकड़ी
पर जमी हुई कार्बन डेन्टिग के आधार पर यह सिद्ध कर दिया था कि यह दरवाजा सन् 1359 ईस्वी के आस-पास
का बना हुआ है। जबकि उस वक्त मुगलों का नामों-निshaन भी नहीं था। और मुमताज की मृत्यु 1631 ईस्वी में
हुई थी।  उसी वर्S 1631 में एक अंग्रेज भ्रमणकर्ता पीटर मुंडी के लेख में भी इस बात का पुरजोर समर्थन है कि
ताजमहल मुगल बादshaह के पहले अति महत्वपूर्ण भवन था।
झझझ इसी तरह एक फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम. डी. जो औेरंगजेब के काल में भारत आया था और
10 year's तक रहा......उसने अपने विवरण में लिखा कि औरंगजेब काल में ही इस तरह का झूठ फैलाया गया कि ताजमहल तो Shaहजहां ने बनवाया था......
प्रोफेसर ओक ने अनेक आकृतियों और Shiल्प सम्बन्धी असंगताओं को जांच-परख कर साबित किया  कि ताज
महल कोई मकबरा नही बल्कि हिन्दूओं का अराध्य Shiव मन्दिर ही है जिसे बल पूवर्क मुगल बादshaह Shaहजहां ने मकबरे का रूप दिया।  आज भी ताजमहल  के अनेको कमरे Shaहजहां के समय से ही बन्द पड़े हैं....जो आम जनता की पहुंच से परे हैं।
प्रोफेसर ओक के अनुसार हिन्दू मन्दिरों में ही पूजा व धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान Shiव की मूर्ति, त्रिshuल,
कलsh और  ऊँ आदि होते हैं .....प्रयोग किये जाते हैं.... कहा जाता है कि ताजमहल में मुमताज की कब्र पर हर समय बूंद बूंद कर पानी टपकता रहता है.....यदि एैसा है तो पूरी दुनियां में किसी की भी कब्र पर बूंद बूंद पानी नही टपकाया जाता.......जबकि प्रत्येक हिन्दू  Shiव मन्दिर में ही Shiव लिंग पर बूंद बूंद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है, फिर ताजमहल में मकबरे के उपर बूंद बूंद कर पानी टपकाने का क्या मतलब है ???????
राजनीतिक भत्र्सना व देesh के मुस्लिम वोटो की लालच या उनके कोप भाजन के डर से इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर
पी. एन. ओक को भयंकर परिणाम भुगतने की धमकी के साथ उनकी सभी पुस्तकों को तत्काल जब्त कर लिया
था।   अगर प्रोफेसर पी. एन. ओक का ‘ताजमहल ’ अनुसंधान गलत था तो क्यों नही वर्तमान केन्द्र सरकार
ताजमहल के बन्द पड़े कमरों को संयुक्त राsट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए.....और अन्र्तराsट्रीय विsesyaज्ञों को छानबीन करने दे .......      जरा सोचिए !!!!!!!!    इस संगमरमरी आर्कshaण वाले तजोमहालय (ताजमहल) को बनवाने का श्रेय बाहर से आने वाले हमलावर मुगल बादshaह Shaहजहां को क्यों ???? 
जबकि इसको बनवाने का सच्चा श्रेय और नाम तो  जयपुर के महाराजा जयसिंह को जाना चाहिए .......
ताजमहल की छुपी हुई सच्चाई यही है कि ये मुमु का मकबरा नही बल्कि हिन्दू राजपूतों का अराध्य स्थल Shiवालय ‘तजोमहालय’ है  ..........
Shiवधाम पर लिटाया..तो Shiव बूंदे आंसू बन गईं,
रूह तड़प-तड़प कर आजतक.. अगान्तुकों से लिपट रही......

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