पानी रे पानी तेरा रंग देखा
पानी का संकट विश्व व्यापी है। इसके लिए जिम्मेदार भी हमारा आचरण ही है। असीम गंदगी फैलाने के बाद नदी-तालाबों की सफाई की ओर ध्यान दिया जा रहा है पर इसमें भी कर्त्तव्य के स्थान पर धंधा शामिल है। सैकड़ों करोड़ के खर्च के बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात बना रहता है। फिर नयी योजनाएं बनती हैं, कर्ज लिया जाता है पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो पाता। आमजन वोट देने के बाद अपनी भूमिका से निवृत हो जाता है|

फ़ोटो: केवल २५ रुपये में ५०० मिली. पानी

गर्मी के मौसम में अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं। फलस्वरूप जल संकट गहरा जाता है। पानी के बंटवारे को लेकर राज्यों में तकरार शुरू हो जाती है। देश की नदियों को परस्पर जोड़कर जल की असमानता की समस्या का हल निकालने के लिए सन् 1952 में नेशनल वाटर ग्रिड की स्थापना की गयी। पर यह योजना सफल नहीं हो सकी। कुछ साल पहले भी नदियों को जोड़ने की योजना तैयार हुई पर यह भी अभी तक सिरे नहीं चढ़ी है।
अनुमान है कि कुछ समय में ही ऐसी स्थिति हो जाएगी कि विश्व के लगभग 40 देशों में पानी का भारी संकट उत्पन्न हो जाएगा। आज भी हमारे यहां अधिकांश क्षेत्रों में जरूरत से काफी कम मात्रा में लोगों को पानी मिल पा रहा है। गांव हो या शहर कमोवेश एक जैसी ही स्थिति देखने को मिलती है। बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती जरूरत के अनुपात में पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। बदलते मौसम के मिजाज के लिए लोगों का आचरण भी कम जिम्मेदार नहीं है।
पानी की दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था, रिसाव आदि के चलते नियमित रूप से काफी बरबादी होती है। वितरण व्यवस्था में सही बदलाव लाकर सुधार करने में खर्च भी काफी होगा। दशकों पुरानी पाइप लाइनों को बदलना आसान काम नहीं है। स्थानीय स्तर पर पानी की व्यवस्था करने के लिए प्रयुक्त होने वाला जमीनी पानी अब जमीन के काफी नीचे पहुंच गया है। जिन स्थनों पर मात्र 1 दशक पहले 40-45 फुट गहराई में पानी उपलब्ध था, वहीं अब लगभग 200 फुट खोदने पर भी पानी नहीं मिलता। यही नहीं गुजरात में कच्छ क्षेत्र में खोदे गये 10 में से 6 नलकूपों में 1200 फुट जमीन के नीचे भी पानी नहीं मिला। अनेक नगरों में स्थानीय प्राशासन द्वारा लगाए गये हैंडपम्प बेकार हो चुके हैं। पानी को लेकर परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। जगह-जगह ट्रेनों और टैंकरों से पानी पहुचाना पड़ रहा है। यही व्यवस्था राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों के करीब 128 गांवों के निवासियों के लिए जीवनदायिनी बनी हुई है।
पानी आज एक फलताफूलता व्यवसाय है। मोटे मुनाफे को देख इस क्षेत्र में हर लल्लूपंजू कूद पड़ा है। प्रकृति प्रदत्त जल की मुफ्त उपलब्धता आमजन के लिए दूभर होती जा रही है। पानी का व्यवसाय विश्व के लगभग 130 देशों में जमकर हो रहा है। यही नही, झील, तालाब और जमीनी पानी सब इन धंधेबाजों के कब्जे में है और सम्भावना भी यही है कि आने वाले समय में पूरी तरह इन्हीं के कब्जे में हो जाएगा। जल की आपर्ति से अधिक उसकी आवश्यकता है। सम्पन्न लोग विभिन्न कार्यों में पानी की आवश्यकता से कहीं अधिक खपत करते हैं। यह सीधेसीधे पानी का दुरुपयोग है।

प्राकृतिल जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और नष्ट किये जा रहे हैं। उन स्थानों की ज़मीन का रिहायशी और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। बहुमंजिले भवन खेतों, जंगलों और हरियाली को निगलते जा रहे हैं। धन्नासेठ और भ्रष्ट लोग सड़क किनारे की और अन्य उपजाऊ जमीन खरीदकर अपना कब्जा किए जा रहे हैं।
पानी की पहचान बोतल और टैंकरों में सिमटती जा रही है। होना यही है कि जिसके पास पैसा है, पानी उसका। घर से बाहर निकलकर आप बस स्टॉप, बस अड्डा, बाजार, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, शापिंग माल, सिनेमा हाल, सरकारी-गैरसरकारी दफ्तर या जहां कहीं भी जाएं राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पानी की बोतलें मिलेंगी या ठंडे पेय की बोतलें। इनके लिए पानी है जिसके लिए आपको अच्छी खासी रकम चुकानी पड़ती है। भूल जाइए कि स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाएं और समर्थ लोग आपके लिए प्याऊ बनवाकर मुफ्त पानी उपलब्ध कराकर आपकी प्यास बुझाएंगे। पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने का पुण्य अब कितने लोग कमा रहे हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। बचीखुची प्याऊ भी कुछ समय बाद गायब हो जाएंगी। पानी की बोतल सम्बन्धित कम्पनी के प्रचार से बनी छवि के अनुरूप आपक व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग बनती जा रही है।
पानी का संकट विश्व व्यापी है। इसके लिए जिम्मेदार भी हमारा आचरण ही है। असीम गंदगी फैलाने के बाद नदी-तालाबों की सफाई की ओर ध्यान दिया जा रहा है पर इसमें भी कर्त्तव्य के स्थान पर धंधा शामिल है। सैकड़ों करोड़ के खर्च के बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात बना रहता है। फिर नयी योजनाएं बनती हैं, कर्ज लिया जाता है पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो पाता। आमजन वोट देने के बाद अपनी भूमिका से निवृत हो जाता है। इसके बाद हमारे जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका यदि सही ढंग से निभाएं तो स्थिति में काफी बदलाव आ सकता है। यह सर्वविदित है कि स्वार्थ और धन के लालच से अपने कर्त्तव्य से विचलित होने में कितनी देर लगती है!
• टी.सी. चन्दर
सहयात्रा
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