23.1.10

इसे गण तंत्र दिवस कहें या तंत्र गण दिवस

जी हाँ, दुनियां का सबसे बड़ा गणतंत्र भारतवर्sh एक बार फिर अपना
‘कथित’ गणतंत्र की वर्shगांठ मना रहा है। देsh के गण को भ्रsट तंत्र
के जरिए महँगाई, आतंकवाद साम्प्रदायिकता, वर्ग संघर्sh और आर्थिक
गुलामी के कैदखानों में धकेल देने वाला ये तंत्र हर बार की तरह इस
बार भी तिरंगे के आगे अपना सिर झूकाएगा। और देsh के गण के
विकास के लिए खोज की गईं नई-नई योजनाओं का व्याख्यान करेगा।
अनेक कार्यक्रमों की घोshणाएं होंगी। चमचे उनकी वाह-वाही करेंगे।
और दीन-हीन भारत की जनता एक बार फिर ठग ली जाएगी साथ
ही सोचने को मजबूर होगी, कि यह किन गणों के लिए तंत्र के द्वारा
कैसा दिवस मनाया जा रहा है? आज भी देsh की आम जनता ‘गणतंत्र’
का मायने तलाsh कर रही है। क्या गणतंत्र का मायने देsh के गणों की
भूख और गरीबी दूर करने की रकम से प्रतिवर्sh सैंकड़ों करोड़ खर्च कर
तंत्र के ऊँचे पदों पर आसिन जनों का, दुनियां वालों को अपना-आपा
और अपनी ताकत दिखाने का जनून है? जिन्होने अपनी सत्ता के लिए
देsh के एक-एक गण को विsव बैंक के पास गिरवी रखते हुए, जाति
और समुदाय में बांट कर रख दिया। जब हमारा संविधान बना था, तो
सबकी समानता की बातें कही गईं थी। लेकिन सत्ता के लिए उसमें
इतने संshoधन कर दिए गये कि आज संपूर्ण भारतीय समाज-जाति
और समुदायों में बंटते हुए, सरकारी नौकरियों या अन्य लाभ पाने के
लालच में दूसरे समुदायों और जातियों को समाप्त कर देने के लिए
अपनी पूरी ताकत झौंकने लग गया हैं। आज के गणतंत्र में गलत या
भ्रsट तरीकों को न इस्तेमाल करने वाले अधिकारी को ही गलत माना
जाता है। उसे चैन से काम करने नहीं दिया जाता। जबकि देsh का गण
भी यह मानने लग गया है कि ईमानदार और रिsवत न लेने वाले
अफसर से, कहीं रिsवतखोर, भ्रsटाचारी अफसर ही अच्छा है, जो
रिsवत लेकर काम तो कर ही देता है। ये हमारे अपने गणतंत्र की
उपलब्धि ही तो है! हमारे विshaल गणतंत्र की सत्ता पर आरम्भ से ही
तंत्र को मुट्ठी में रखते हुए, एक ही परिवार काबिज है। उसके क्षत्रप,
मैनेजर या अनुयायी ही अपने तरीकों से देsh के गणों को भरमाते हुए
इस देsh का shaसन चलाते रहे। जबकि नये लोगों, नई युवा पीढ़ी को,
नये विचारों को भी अवसर मिलना चाहिए था। इस बीच अलग-अलग
हिस्सों से कईं गणक्षत्रप उभरे, किन्तु वे भी तंत्र के आगे बेबस रहे।

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