बच्चे, मां-बाप या हों दादा-दादी
देखते मिलकर टेलीविजन को,
अब shर्म..... भी नही आती
दूरदर्shन और डिजिटल टी.वी
दिखाते गाने, फिल्में और चित्रहार,
जो मनोरंजन के नाम पर सैक्स वल्गारिटी है
कर रहे हमारा चरित्रहार।
जो हमें ये दिखाते हैं,
वही हम करते जाते हैं,
क्या यही है हमारी समाज संस्कृति
जिसे विरासत से हम पाते हैं ?
यह है विदेshiयों का shड़यन्त्र,
हमारे विरूद्ध साजिsh है एक
भ्रsट कर दो संस्कृति भारत की,
रह न जाए कोई एक
विदेshiयों को है मालूम,
पैदा होते यहां तिलक और विवेकानन्द
कर दो नस्ल खराब भारत की
बन न सकें फिर भगत सिंह और दयानन्द
इसी लिए तो सबसे पहले, ये टेलीविज़न को लाये
चढ़ जाए नौज़वानों पर खुमार एैसा
न तिलक पैदा हों, न भगत सिंह आये ।
यह सैक्स का जादू
भारतवासियों को कर रहा बर्बाद,
सच्चाई को समझो........ यारों....
इसके प्रचारक यूरोप-अमरीका भी हैं नहीं आबाद।
देsh भर में बलात्कारों की संख्या
दिन-दुगनी रफतार से बढ़ी हंै
टेलीविज़न, दूरदर्shन और केबल चैनल ही
इस राक्षसीपन, हैवानियत की कड़ी हैं।
अगर.... आपका खो जाए धन!
तो इन्सान पुर्ति कर सकता है
लगाके सुझ-बुझ और अपना तन-मन।
अगर..... आपका स्वास्थ्य हो जाए खराब!
उसे लाया जा सकता है
पूर्व स्थिति में करके ईलाज।
लेकिन जब हो जाए.....चरित्र का पतन !
ते बचता नही shesh, चाहे लाख करता रहे यत्न।
बचपन में हम पढ़ा करते थे....
इफ वेल्थ इज़ लाॅस्ट.. नथिंग इज़ लाॅस्ट
इफ हैल्थ इज़ लाॅस्ट.. समथिंग इज़ लाॅस्ट
बट कैरेैक्टर इज़़्ा लाॅस्ट.. एवरीथिंग इज़ लाॅस्ट...
(सुरेsh त्रेहण)
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