लड़ रहा है सदियों से,
गरीब और कमजोर समाज
हक मांगा जब-जब राजसत्ता से
कहलाया बागी, आंतकी या बदमाsh।
अंग्रेजों से भी वही लड़ा था
थी आजादी की लड़ाई
हो गया आजाद, देsh मगर
उसकी हुई न सुनवाई
आज भी गरीबों का,
है पेट का सवाल
गायब होती जा रही
उसकी रोटी और दाल
‘लोकराज’ तो जा रहा किताबों में
अब विsवबैंक का राज है
हुआ देsh में भ्रsटाचार का जंगलराज
जहां मौज में अमीर, गरीब मोहताज है।
बासठ वर्sh बीत गये
सरकारें रहीं सिर्फ गफलत में
उठने को तैयार है गरीब
अब तुम्हारी नफरत में
गरीब - गरीब क्यों ?
अमीर - अमीर क्यों ?
इस रहस्य को सुलझाओ
गरीब की रोटी की लड़ाई को
अब और न सुलगाओ
नेस्तनाबुद हो जाएंगे भ्रsटाचारी जब
और नकली लोकतन्त्र की मिनारें भी
टूट जाएं सत्ता के गलियारे
ढह जाएं- shहरों की दीवारें भी।
किस-किस को मारेगी सरकार?
कितनों को लटकाएगी सलीब पे?
डेढ़ अरब की आबादी में,
क्या बच पाएगी, सवा अरब गरीब से।
सुरेsh त्रेहण
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